हिन्दी सप्ताह की एक अन्य रचना आई है सुधीर सक्सेना ' सुधि' जी की ओर से। सुधीर जी जयपुर में रहते हैं और गाहे बगाहे इनकी रचनायें ब्लॉग जगत में देखने को मिल जाती हैं। इस बार ये हमारा सौभाग्य है कि इन्होने केव्स संचार के लिए अपनी रचना हमें भेजी है। आप ख़ुद ही पढ़ें और आनंद लें इस कटाक्ष का,
शीर्षक !
मेरी कविता का शीर्षक
जो गुम हो गया था,
शब्दों की भीड़ में,
कल शाम अचानक
मिल गया सड़क पर
एक वृद्ध भिखारी की
लाठी से लिपटा हुआ.
हम एक दूसरे को देखकर
बहुत रोये.
मैने उससे कहा- चलो
कविता तुम्हारी प्रतीक्षा
कर रही है.
उसने कहा- नहीं,
मैं नहीं जा सकता
तुम्हारी वो कविता
सिर्फ़ कल्पना है
पर यहाँ मैं
हकीकत में जी रहा हूँ!
-सुधीर सक्सेना 'सुधि'
75/44, क्षिप्रा पथ, मानसरोवर, जयपुर-३०२०२०
बहुत खूब, शीषर्क की तलाश में गए और पूरी कविता ही उठा लाये .
ReplyDeleteबहुत खूब, शीषर्क की तलाश में गए और पूरी कविता ही उठा लाये .
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