साभार : बी बी सी हिन्दी
अनुपम श्रीवास्तव जोर्जिया विश्वविद्यालय में एशिया कार्यक्रम के निदेशक
एनएसजी की मोहर लगने के बाद यह लाभ हुआ है कि अब अमरीका भारत के असामरिक परमाणु कार्यक्रम में सहयोग कर सकता है.
अब अमरीका के राष्ट्रपति की ओर से भारत-अमरीका परमाणु क़रार की स्वीकृति बची हुई है. इसके लिए अमरीका सरकार की ओर से एक प्रतिनिधिमंडल भारत आकर इस बात की जाँच-पड़ताल करेगा कि भारत ने समझौते में जिन बातों का पालन करने का वादा किया है, उसे किस तरह से लागू किया जाएगा.
इस दिशा में कुछ काम हो भी रहा है और स्टेट डिपार्टमेंट जल्द ही इस बारे में अपनी रिपोर्ट तैयार करके अमरीकी राष्ट्रपति को सौंप देगा जिसके बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति की औपचारिकता का रास्ता खुल जाएगा.
राष्ट्रपति की ओर से इस रिपोर्ट के आधार पर प्रस्ताव अमरीकी संसद के समक्ष रखा जाएगा. इसपर विचार विमर्श के लिए 30 दिन का समय दिया जाएगा और फिर संसद में इसपर मतदान होगा.
ख़ास बात यह है कि संसद के दोनों सदनों में इस प्रस्ताव पर बहस हो सकती है, विवाद हो सकता है लेकिन इसमें संशोधन की कोई गुंजाइश नहीं होगी. सांसदों को या तो इसके पक्ष में मत देना होगा या विरोध में, पर संशोधन नहीं किए जाएंगे.
अमरीकी सरकार की कोशिश रहेगी कि यह प्रक्रिया 26 सितंबर तक पूरी कर ली जाए. अगर ऐसा नहीं किया जा सका तो राष्ट्रपति चुनाव के बाद संसद के लेम-डक सत्र में राष्ट्रपति इसे फिर से प्रस्तावित करके पारित करवा सकते हैं.
अब अमरीका के राष्ट्रपति की ओर से भारत-अमरीका परमाणु क़रार की स्वीकृति बची हुई है. इसके लिए अमरीका सरकार की ओर से एक प्रतिनिधिमंडल भारत आकर इस बात की जाँच-पड़ताल करेगा कि भारत ने समझौते में जिन बातों का पालन करने का वादा किया है, उसे किस तरह से लागू किया जाएगा.
इस दिशा में कुछ काम हो भी रहा है और स्टेट डिपार्टमेंट जल्द ही इस बारे में अपनी रिपोर्ट तैयार करके अमरीकी राष्ट्रपति को सौंप देगा जिसके बाद राष्ट्रपति की स्वीकृति की औपचारिकता का रास्ता खुल जाएगा.
राष्ट्रपति की ओर से इस रिपोर्ट के आधार पर प्रस्ताव अमरीकी संसद के समक्ष रखा जाएगा. इसपर विचार विमर्श के लिए 30 दिन का समय दिया जाएगा और फिर संसद में इसपर मतदान होगा.
ख़ास बात यह है कि संसद के दोनों सदनों में इस प्रस्ताव पर बहस हो सकती है, विवाद हो सकता है लेकिन इसमें संशोधन की कोई गुंजाइश नहीं होगी. सांसदों को या तो इसके पक्ष में मत देना होगा या विरोध में, पर संशोधन नहीं किए जाएंगे.
अमरीकी सरकार की कोशिश रहेगी कि यह प्रक्रिया 26 सितंबर तक पूरी कर ली जाए. अगर ऐसा नहीं किया जा सका तो राष्ट्रपति चुनाव के बाद संसद के लेम-डक सत्र में राष्ट्रपति इसे फिर से प्रस्तावित करके पारित करवा सकते हैं.
"इस बात की पूरी संभावना है कि अमरीकी संसद के इसी सत्र में इसे पारित कर दिया जाए क्योंकि रिपब्लिकन पूरी तरह से इसके साथ हैं और डेमोक्रेट भी भारत के साथ इस समझौते को तोड़ना नहीं चाहेंगे"
परमाणु बाज़ार खुला
एनएसजी की हरी झंडी के बाद सबसे बड़ी बात यह हुई है कि भारत अब किसी भी सदस्य देश से परमाणु ईधन ले सकता है.
यह कतई ज़रूरी नहीं है कि भारत अमरीका से ही इसकी शुरुआत करे या अमरीका ने अगर नहीं दिया तो भारत को परमाणु ईधन नहीं मिलेगा.
पर भारत को कोशिश यही है कि वो पहल अमरीका के साथ ही करे.
हालांकि रूस और फ्रांस के साथ भारत 123 एग्रीमेंट पर पहले ही पहल कर चुका है. फ्रांस के राष्ट्रपति ने इस बारे में ही भारतीय प्रधानमंत्री से 30 सितंबर का समय मांगा है.
यानी साफ़ तौर पर भारत एनएसजी के किसी भी सदस्य देश के साथ स्वतंत्र रूप से समझौता कर सकता है.
इस बात की पूरी संभावना है कि अमरीकी संसद के इसी सत्र में इसे पारित कर दिया जाए क्योंकि रिपब्लिकन पूरी तरह से इसके साथ हैं और डेमोक्रेट भी भारत के साथ इस समझौते को तोड़ना नहीं चाहेंगे.
अगर डेमोक्रेट रोकने की कोशिश भी करेंगे तो उन्हें अपने ही उद्योग जगत के दबाव का सामना करना पड़ेगा.
उद्योग जगत का तर्क होगा कि भारत के लिए परमाणु ईधन का रास्ता साफ़ तो करवाया अमरीका ने पर इसका लाभ रूस और फ्रांस जैसे देशों को मिल रहा है, अमरीका को नहीं.
ऐसे में अमरीका की सरकार पर अपने बाज़ार के हित को ध्यान में रखने का ख़ासा दबाव बनेगा.
एनएसजी की हरी झंडी के बाद सबसे बड़ी बात यह हुई है कि भारत अब किसी भी सदस्य देश से परमाणु ईधन ले सकता है.
यह कतई ज़रूरी नहीं है कि भारत अमरीका से ही इसकी शुरुआत करे या अमरीका ने अगर नहीं दिया तो भारत को परमाणु ईधन नहीं मिलेगा.
पर भारत को कोशिश यही है कि वो पहल अमरीका के साथ ही करे.
हालांकि रूस और फ्रांस के साथ भारत 123 एग्रीमेंट पर पहले ही पहल कर चुका है. फ्रांस के राष्ट्रपति ने इस बारे में ही भारतीय प्रधानमंत्री से 30 सितंबर का समय मांगा है.
यानी साफ़ तौर पर भारत एनएसजी के किसी भी सदस्य देश के साथ स्वतंत्र रूप से समझौता कर सकता है.
इस बात की पूरी संभावना है कि अमरीकी संसद के इसी सत्र में इसे पारित कर दिया जाए क्योंकि रिपब्लिकन पूरी तरह से इसके साथ हैं और डेमोक्रेट भी भारत के साथ इस समझौते को तोड़ना नहीं चाहेंगे.
अगर डेमोक्रेट रोकने की कोशिश भी करेंगे तो उन्हें अपने ही उद्योग जगत के दबाव का सामना करना पड़ेगा.
उद्योग जगत का तर्क होगा कि भारत के लिए परमाणु ईधन का रास्ता साफ़ तो करवाया अमरीका ने पर इसका लाभ रूस और फ्रांस जैसे देशों को मिल रहा है, अमरीका को नहीं.
ऐसे में अमरीका की सरकार पर अपने बाज़ार के हित को ध्यान में रखने का ख़ासा दबाव बनेगा.
with the NSG waiver through i feel that it`s the right time for India to head in this direction. No doubt that we are getting things at some cost but risks are worth taken if they prove to be on ur side.
ReplyDeleteCheers for N-deal and my best wishes to those who are bringing it on the worldly platform.