सबसे पहले तो आशु प्रज्ञ और हिमांशु को बहुत साधुवाद, इन दोनों ने लगातार हिन्दी सप्ताह को जीवंत बनाए रखा। इन दो दिनों की अस्वस्थता के कारण लगा कि पता नहीं हिन्दी सप्ताह का प्राण पूरा होगा कि नहीं पर इन लोगों ने प्रयास को सफल किया। फिलहाल आज थोडा ठीक हूँ तो फिर से वापस हूँ और आज आप लोगों के सामने प्रस्तुत करूंगा एक ऐसी कविता जो हिन्दी के बारे में है।
इस कविता के रचयिता कवि हैं रामेश्वर काम्बोज ' हिमांशु '। इनका जन्म १९ मार्च १९४९ को ग्राम हरिपुर, तहसील बेहट, जिला सहारनपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था। इनकी प्रमुख कृतियाँ माटी, पानी और हवा, अँजुरी भर आसीस, कुकड़ूकूँ, हुआ सवेरा, असभ्य नगर(लघुकथा संग्रह), खूँटी पर टँगी आत्मा(व्यंग्य -संग्रह) हैं। वर्तमान में काम्बोज जी केन्द्रीय विद्यालय आयुध उपस्कर निर्माणी, हज़रतपुर, जिला फ़िरोज़ाबाद, उत्तर प्रदेश में प्राचार्य के पद पर कार्यरत हैं।
श्रृंगार है हिन्दी
खुसरो के हृदय का उदगार है हिन्दी ।
कबीर के दोहों का संसार है हिन्दी ।।
मीरा के मन की पीर बनकर गूँजती घर-घर ।
सूर के सागर- सा विस्तार है हिन्दी ।।
कबीर के दोहों का संसार है हिन्दी ।।
मीरा के मन की पीर बनकर गूँजती घर-घर ।
सूर के सागर- सा विस्तार है हिन्दी ।।
जन-जन के मानस में, बस गई जो गहरे तक ।
तुलसी के 'मानस' का विस्तार है हिन्दी ।।
दादू और रैदास ने गाया है झूमकर ।
छू गई है मन के सभी तार है हिन्दी ।।
'सत्यार्थप्रकाश' बन अँधेरा मिटा दिया ।
टंकारा के दयानन्द की टंकार है हिन्दी ।।
गाँधी की वाणी बन भारत जगा दिया ।
आज़ादी के गीतों की ललकार है हिन्दी ।।
टंकारा के दयानन्द की टंकार है हिन्दी ।।
गाँधी की वाणी बन भारत जगा दिया ।
आज़ादी के गीतों की ललकार है हिन्दी ।।
'कामायनी' का 'उर्वशी’ का रूप है इसमें ।
'आँसू' की करुण, सहज जलधार है हिन्दी ।।
प्रसाद ने हिमाद्रि से ऊँचा उठा दिया।
निराला की वीणा वादिनी झंकार है हिन्दी।।
'आँसू' की करुण, सहज जलधार है हिन्दी ।।
प्रसाद ने हिमाद्रि से ऊँचा उठा दिया।
निराला की वीणा वादिनी झंकार है हिन्दी।।
पीड़ित की पीर घुलकर यह 'गोदान' बन गई ।
भारत का है गौरव, शृंगार है हिन्दी ।।
'मधुशाला' की मधुरता है इसमें घुली हुई ।
दिनकर के 'द्वापर' की हुंकार है हिन्दी ।।
भारत का है गौरव, शृंगार है हिन्दी ।।
'मधुशाला' की मधुरता है इसमें घुली हुई ।
दिनकर के 'द्वापर' की हुंकार है हिन्दी ।।
भारत को समझना है तो जानिए इसको ।
दुनिया भर में पा रही विस्तार है हिन्दी ।।
सबके दिलों को जोड़ने का काम कर रही ।
देश का स्वाभिमान है, आधार है हिन्दी ।।
दुनिया भर में पा रही विस्तार है हिन्दी ।।
सबके दिलों को जोड़ने का काम कर रही ।
देश का स्वाभिमान है, आधार है हिन्दी ।।
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
साभार : कविता कोष (http://www.kavitakosh.org/)
भारत को समझना है तो जानिए इसको ।
ReplyDeleteदुनिया भर में पा रही विस्तार है हिन्दी ।।
सबके दिलों को जोड़ने का काम कर रही ।
देश का स्वाभिमान है, आधार है हिन्दी ।।
हमारी भाषा में इतनी सुंदर कविता लिखने के लिए रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' जी को बहुत बहुत धन्यवाद .
बहुत अच्छा लिखा है. बधाई.
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