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Friday, October 10, 2008

कलम और चिट्ठी ......

विवेक /अभी हालिया में श्याम बेनेगल की फ़िल्म वेलकम टू सज्जनपुर ने एक बार फिर आज के आधुनिक युग में जब संचार के कई आयाम मौजूद है ,तभी e-मेल ,ब्लॉग के जंजाल ,टेलीफोन से बाहर निकलकर हमारी पुरानी संचार व्यवस्था जिसे हम चिट्ठी या फिर पत्र कहते हैं को हमारे मानस पटल पर केंद्रित करते हुए (चिठ्ठी आई है) की याद दिलाई है खैर कलम की ताकत सीमित नही हो सकती की वह कभी पत्रकार या लेखक के हाथो का साधन मात्र बन जाए बल्कि कलम ने स्वय अपनी ताकत से लेखक या पत्रकार को मजबूर किया है की मुझे पकड़ और लिख लेकिन इससे आगे बढ़कर सोचे तो शायद हमारी रक्षा कर रहे जवान हो या घर में आश लगाए माँ बाप जो एक गरीब विकसित देश के अंग है के लिए चिट्ठी, उस कलम स्याही या एक सफ़ेद कागज़ के जोड़ से कही ज्यादा है दोस्तों कलम की ताकत वंहा भी दीखाई देती थी जब डाकिया चाचा कोई चिठ्ठी लेकर महीनो पर किसी दरवाजे पर पहूंचते थे सायद तब यह फक्र की बात होती थी और आज भी ,मुख्य बात यह की चिठ्ठी में जो मार्मिकता ,खुशी,संवेदनशीलता ,अहसाश ,मिलता है शायद वो खुशी अहसाश मेसेज या मेल नही दे पाते हो.......जारी रहेगा.....

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