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Monday, October 20, 2008

भूख की बिसात पर विकास के मायने

आज देश आर्थिक मोर्चे पर खूब प्रगति कर रहा है.चाहे खेल का मैदान हो या अन्तरिक्ष विज्ञानं का रहस्य या फिर वैश्विक राजनितिक -व्यापारिक मंच हर किले को फतह करने में हम सफल हो रहे हैं. इसी विकास के गुमान की पोले खोल रहा है अभी हाल ही में जारी वैश्विक भुखमरी सूचकांक २००८ जिसमेबताया गया है की विश्व की कुल भूखी आबादी का २५ प्रतिशत हमारे देश में रहता है. पाँच वर्ष तक के सर्वाधिक कुपोषित पाँच करोड़ बच्चे भी हमारे देश में रहते है. भारत में ही सबसे ज्यादा नवजात शिशु और नौजवान माताओं की मौत होती है. स्वस्थ्य और शिक्षा सुबिधाओं का बुरा हाल है. आज पुरी दुनिया में सबसे ८६ करोड़ लोग भूख से त्रस्त हैं जो वश्विक विकास के खोखली मिथक को तोड़ता है. अभिजित सेनगुप्ता कमिटी के रिपोर्ट के मुताबिक हमारे देश में ८४ करोड़ लोग २० रूपये प्रतिदिन पर गुजारा करते हैं. जरा सोचिये कैसा होगा इनका जीवन. कितनी बड़ी विडम्बना है न इस देश की जहाँ धन कुबेरों का एक समुदाय रहता है उसी देश में भूख से तड़पने वालों की तादाद भी बहुत ज्यादा है.भ्रष्टाचार चरम पर है, हत्या ,बलात्कार घरेलु हिंसा में हम सबसे आगे हैं इन सबसे विकास अवरुध्ध होता है,मानवीयता लज्जित होती है. देश में बदहाली का आलम ऐसा है की लोग पहले से ही पेट की आग नही बुझा प् रहे थे उन्हें महगाई ने और मार डाला है . विश्व की सबसे सस्ती कार नैनों और उद्द्योगपतियों की एक फौज पैदा करने वाले इस देश में गरीबों का जीवन गाजर-मूली के समान है जिसे जब चाहो काटो और उखाड़ दो कोई फर्क नही पड़ता. आज इस देश में गरीबी और आतंकवाद राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका है और इन दोनों का ही आपस में गहरा सम्बन्ध है. सरकार को लगता है की इससे कोई सरोकार ही नही है. इसमे सारा दोष हमारे नीति-निर्माताओं का है सबकुछ जानकर भी अनजान बने हुए हैं. इस मामले में केन्द्र और राज्य दोनों ही सरकारें दोषी हैं.अब तक किसी प्रधानमंत्री ने गरीबी के मुद्दे को लेकर गंभीरता पुर्वक रूचि नहीं दिखाई है. सिर्फ़ चुनाओं के समय गरीबी हटाओ, इंडिया शाइनिंग,संपूर्ण विकास,और बिल्डिंग इंडिया जैसे नारे अब तक दिए जाते रहे हैं और धर्म के नाम साम्प्रदायिकता की राजनीती के सहारे जनभावनाओं को उकेर कर चुनावी जंग जितने की कोशिश की जाती रही है. आज जरुरत है की हमारे नीति निर्माता बंद एसी कमरों से निकल कर गरीबी, भुखमरी,आतंकवाद के विरुध्ध धुप में बैठकर योजनायें तैयार करें तभी इन समस्याओं का समाधान निकल पायेगा. वरना हमारी सरकारें गरीबी और भूख के बिसात पर विकास के मुंगेरी लाल के हसीं सपने की तरह ही सपने देखते रह जायेंगे और हमसे बदहाल और पिछडे देश आगे निकल जायेंगे.

4 comments:

  1. सही कहा तुमने ओम ... पर इसके लिए अब लगता है क्रान्ति की ज़रूरत है...
    हम युवा पत्रकारों को आगे आना होगा ..... टी आर पी की अंधी दौड़ से कहीं आगे....ग्लैमर और गाड़ी की चाह से कहीं आगे .....

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  2. In the dictionary of Monmohan Singh the meaning of development is same which you have decribed in your new post.

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  3. अत्यन्त सार्थक आलेख है.सचमुच ये तथ्य झकझोर जाते हैं,बहुत व्यथित करते हैं.

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  4. बहुत अच्छा मुद्दा लिया आपने
    जब बातें उठेंगी तभी समाधान निकलने की भी उम्मीद है

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